अंत हीन गलियां थीं वो जिनसे समय गुजर रहा था
पर वो दिशा हीन भी होंगी इसका उसे आभास भी न था
लंबे लंबे डग भरता वो आगे आने वाले मोड़ के इन्तजार में
उत्साह से छलांगे लगाते शायद कुछ गुनगुनाते सा जा रहा था
कल रात बारिश भी हुई थी तो धुप भी कुछ गुनगुनी सी थी
पानी में छप-छप करता सावन की बहारों के ख़याल संजोता सा जा रहा था
पर जैसे ही वो उस मोड़ पर पहुँचा, आगे और भी लम्बी मकानों से घिरी गली थी
एक लम्बी साँस ले समय ने इस गली के पार जाने को कदम बढाया
चलते चलते जब उसकी साँस फूलने लगी तो टेक ले ली एक घर की सिदियों की
बैठा सुस्ताता सा सोचने लगा समय की आख़िर उसने ये यात्रा आरम्भ कब की थी
झाँका अतीत में उसने, पूछा जल्दबाजी में सामने से गुजरती घड़ी से
पर न तो उसे ही कुछ याद आया, न गुजरती घडियां ही कोई जवाब दे पायीं
हार कर समय ने सोचा कि क्या फर्क पड़ता है यात्रा आरम्भ कब की थी
अब तो यात्रा का अवसान होने को है बस ये सफर ख़त्म होने ही को है
हा!!! इतना विश्वास
किस बलबूते पर !!!
जिस यात्रा का आरम्भ ही याद नही रहा उसका अंत नज़दीक ही होगा
इसकी क्या विश्वसनीयता है
जिस यात्रा का हर पड़ाव ये सोचते ही गुजरे कि मंजिल बस आगे दिखे वाले क्षितिज पर ही है
उस क्षितिज को जिसे पाने के लिए तो सदियाँ चल रही है!!!
पूरी कि पूरी सदियाँ गुजर रही हैं
और समय न चाहते हुए भी उनके साथ घिसट रहा है
क्षितिज जो उसके हर एक कदम के साथ ख़ुद एक कदम पीछे हट जाता है
उस क्षितिज के पीछे आख़िर सभी क्यूँ भाग रहे हैं
बीती सदियों सवाल सुनते ही उसे झटक दिया और आने वाली सदियाँ तो समझ ही न सकी इस उलझन को
क्यूंकि सवालों को तो काटकर पहले ही उनकी हत्या कर दी गई थी
जो जिन्दा थे उनकी जुबाने काट दी गई
और जो फ़िर भी खामोश न रहे
उन्हें पागल करार दे दिया
आख़िर उनकी हिम्मत कैसे हुई उठ कर खड़े होने की और सदियों पर प्रश्न चिह्न लगाने की
और सदियों से नाराजगी मोल लेने कि सजा समय अब तक भुगत रहा है
क्षितिज को पाने कि होड़ में वो भी अब उनके साथ
इन अंतहीन गलियों में
भटक रहा है!!!!
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