अगर चलता वक़्त
पीछे की ओर
तो समेट लेते
छूटी यादें
बिसरे मित्र
कुछ पहले पहल
कुछ आखिरी लफ्ज़
अचंभित निराशायें
प्रफ्फुलित मुलाकातें
फिसलती फुरसतें
रूठती बरसातें
सिकुड़ते दिन
बेमतलब बातें
तय किये सफ़र
सोयी हुयी सहर
भागती दोपहरें
रूकती शामें
टूटते तारे
बजती तारें
खुलती सड़कें
बंद दरवाजे
कागजों में बसती स्याही
बक्सों में बंद ज़िन्दगी
पुराने शिकवे
झड़ते फूल सेमल के
घुमावदार सीड़ियाँ
अंतहीन सड़कें
घायल स्वप्न
ठंडी पड़ी योजनायें
फिसलती उम्मीदें
उफान पर हौसले
वक़्त हुआ
कहने का
तुमको अलविदा
नहीं कह सकते
कि फिर मिलेंगे|
All works copyright of Ankita Chauhan
Please note that work here belongs to Ankita Chauhan and may not be reproduced anywhere without her prior permission.
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मंगलवार, 31 दिसंबर 2013
शनिवार, 28 दिसंबर 2013
ज़िन्दगी सड़कों पर खडी
दिन की कमीज में पैबंद लगे
रात की चादर कुछ छोटी पड़ गयी
उसने नजर फेर ली
मैंने न देखने का फैसला किया
उसने ज़ुबान पर ताले लगा लिए
मैंने आवाज को दबा दिया
ज़िन्दगी सड़कों पर खडी
नंगी धूप में
बचपन बेचती रही|
मौसम जब सख्त हुआ और हवा के रुख बदले
जलती धरती पैरो की नरमी खा गयी
उसने हाथ झटक लिए
मैंने कदमों की चाल बढा दी
उसने दरवाजे बंद कर लिए
मैंने रास्ता बदल लिया
ज़िन्दगी सडकों पर खड़ी
नंगी धूप में
बचपन बेचती रही|
चौराहे पर ज़िन्दगी बदस्तूर चलती रही
एक इमारत महीनों बाद बनकर खड़ी हो गयी
उसने हक की बात न की
मैंने लफ़्ज़ों को समेट लिया
उसने किस्मत को कोस दिया
मैंने हाथों को बढ़ने से रोक लिया
ज़िन्दगी सडकों पर खड़ी
नंगी धूप में
बचपन बेचती रही|
रात की चादर कुछ छोटी पड़ गयी
उसने नजर फेर ली
मैंने न देखने का फैसला किया
उसने ज़ुबान पर ताले लगा लिए
मैंने आवाज को दबा दिया
ज़िन्दगी सड़कों पर खडी
नंगी धूप में
बचपन बेचती रही|
मौसम जब सख्त हुआ और हवा के रुख बदले
जलती धरती पैरो की नरमी खा गयी
उसने हाथ झटक लिए
मैंने कदमों की चाल बढा दी
उसने दरवाजे बंद कर लिए
मैंने रास्ता बदल लिया
ज़िन्दगी सडकों पर खड़ी
नंगी धूप में
बचपन बेचती रही|
चौराहे पर ज़िन्दगी बदस्तूर चलती रही
एक इमारत महीनों बाद बनकर खड़ी हो गयी
उसने हक की बात न की
मैंने लफ़्ज़ों को समेट लिया
उसने किस्मत को कोस दिया
मैंने हाथों को बढ़ने से रोक लिया
ज़िन्दगी सडकों पर खड़ी
नंगी धूप में
बचपन बेचती रही|
बुधवार, 20 नवंबर 2013
सुबह होने को है
रात जो चराग जलाए थे
उन्हें बुझा दो
सुबह होने को है
रात जो ख्वाब तारो को बताये थे
उन्हें छुपा दो
दुनिया वाले जागने को है
सुबह होने को है...
उन्हें बुझा दो
सुबह होने को है
रात जो ख्वाब तारो को बताये थे
उन्हें छुपा दो
दुनिया वाले जागने को है
सुबह होने को है...
सोमवार, 18 नवंबर 2013
सुबह होने में
अगर नींद नहीं आती
चल कर सिरहाने तक
रात भर करवटे बदलने
के बाद भी...मतलब
सफ़र अभी बाकी है
सुबह होने में अभी
एक रात और बाकी है|
चल कर सिरहाने तक
रात भर करवटे बदलने
के बाद भी...मतलब
सफ़र अभी बाकी है
सुबह होने में अभी
एक रात और बाकी है|
शुक्रवार, 14 जून 2013
पहली रात है शहर में
पहली रात है
शहर में
आज नींद नहीं आएगी
फुटपाथ पर
सिरहाने बिजली का
खम्भा है
जिससे जगमगाती है
पूरी सड़क
रात भर
भरती है वो
सोडियम बल्ब
की रोशनी
मेरी आँखों में
नींद की जगह
मैं खींच लेता हूँ
आँखों पर
एक धुली
सफ़ेद चादर
जिसे मेरी पत्नी ने
अपने हाथों से धोकर
रखा था
लोहे के बक्से में
और निकाला था बाहर
सफ़र के लिए
इस चादर से
घर की खुशबू आती है
कितनी रातें गुजरेंगी यहाँ
और कब तक इस
खुशबू को
समेट पाउँगा
पहली रात है
शहर में
आज नींद नहीं आएगी
फुटपाथ पर|
सड़क की दूसरी ओर
जहा मैं लेटा हूँ
एक सरकारी अस्पताल है
वहाँ देखता हूँ
तो इस घडी भी
खासी गहमागहमी
सी लगती है
अन्दर अस्पताल में
किसी कमरे के
एक कोने में
गद्दा बिछाया गया है
जिस पर मेरी पत्नी
लेटी हुयी होगी
अक्सर उसे अनजान जगह पर
नींद नहीं आती
पर आज वो खामोश
वहाँ सोयी पडी है
उसके हाथों की नीली नसें
वक़्त बेवक्त
फडफडाती हैं बैचैन
न जाने कब तक
तडपेंगी ये नसें
और कब तक
खून दौडेगा उनमे
दवाओं में घुलकर
ना जाने कब सब
खामोश हो जाएगा
डॉक्टर कहता है
कुछ भी कहना मुश्किल है
पहली रात है
अभी तो
शहर में
आज नींद
पास भी नहीं फटकेगी|
शहर में
आज नींद नहीं आएगी
फुटपाथ पर
सिरहाने बिजली का
खम्भा है
जिससे जगमगाती है
पूरी सड़क
रात भर
भरती है वो
सोडियम बल्ब
की रोशनी
मेरी आँखों में
नींद की जगह
मैं खींच लेता हूँ
आँखों पर
एक धुली
सफ़ेद चादर
जिसे मेरी पत्नी ने
अपने हाथों से धोकर
रखा था
लोहे के बक्से में
और निकाला था बाहर
सफ़र के लिए
इस चादर से
घर की खुशबू आती है
कितनी रातें गुजरेंगी यहाँ
और कब तक इस
खुशबू को
समेट पाउँगा
पहली रात है
शहर में
आज नींद नहीं आएगी
फुटपाथ पर|
सड़क की दूसरी ओर
जहा मैं लेटा हूँ
एक सरकारी अस्पताल है
वहाँ देखता हूँ
तो इस घडी भी
खासी गहमागहमी
सी लगती है
अन्दर अस्पताल में
किसी कमरे के
एक कोने में
गद्दा बिछाया गया है
जिस पर मेरी पत्नी
लेटी हुयी होगी
अक्सर उसे अनजान जगह पर
नींद नहीं आती
पर आज वो खामोश
वहाँ सोयी पडी है
उसके हाथों की नीली नसें
वक़्त बेवक्त
फडफडाती हैं बैचैन
न जाने कब तक
तडपेंगी ये नसें
और कब तक
खून दौडेगा उनमे
दवाओं में घुलकर
ना जाने कब सब
खामोश हो जाएगा
डॉक्टर कहता है
कुछ भी कहना मुश्किल है
पहली रात है
अभी तो
शहर में
आज नींद
पास भी नहीं फटकेगी|
बुधवार, 5 जून 2013
एक तारा
यहाँ से मीलों दूर
आसमान की उत्तर दिशा में
एक तारा जगमगाता है
रात भर
मैं उसका हाथ थामकर
इन लम्बे रास्तों को
पार करता हूँ
हर रात
तब भी रहता हूँ
दूर ही उससे
हमारे दरमियान
सन्नाटों के उजाले
और फासलों के अँधेरे
हमेशा रहते हैं
आसमान की उत्तर दिशा में
एक तारा जगमगाता है
रात भर
मैं उसका हाथ थामकर
इन लम्बे रास्तों को
पार करता हूँ
हर रात
तब भी रहता हूँ
दूर ही उससे
हमारे दरमियान
सन्नाटों के उजाले
और फासलों के अँधेरे
हमेशा रहते हैं
बुधवार, 15 मई 2013
कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं
तलाश है
कुछ किरदारों की
जो बोल सके
वो अल्फाज
जो दफन है अन्दर
एक कहानी की शक्ल में
ताकि एक दिन
वो कहानी
कही जा सके
सुनी जा सके
एक दिन
जब खड़े हो हम
किसी मशरूफ सड़क पर
और वहाँ मिल सके
एक अधूरे लम्हे से
कुछ जोड़ सके उसमे
कुछ घटा सके
और कम-स-कम कह सके
एक पूरी कहानी
फिर चलें तो
ये सड़क शायद पार कर सके
वरना भीड़ बहुत है
धकेलने के लिए
उनके लम्हे हम नहीं पढते
न ही वो हमारे
हम अलग अलग कहानियों के किरदार है
सो एक दूसरे से बातचीत नहीं रखते
ताकि आखिर में कहा जा सके
कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं
इनका असलियत से कोई ताल्लुक नहीं है...
कुछ किरदारों की
जो बोल सके
वो अल्फाज
जो दफन है अन्दर
एक कहानी की शक्ल में
ताकि एक दिन
वो कहानी
कही जा सके
सुनी जा सके
एक दिन
जब खड़े हो हम
किसी मशरूफ सड़क पर
और वहाँ मिल सके
एक अधूरे लम्हे से
कुछ जोड़ सके उसमे
कुछ घटा सके
और कम-स-कम कह सके
एक पूरी कहानी
फिर चलें तो
ये सड़क शायद पार कर सके
वरना भीड़ बहुत है
धकेलने के लिए
उनके लम्हे हम नहीं पढते
न ही वो हमारे
हम अलग अलग कहानियों के किरदार है
सो एक दूसरे से बातचीत नहीं रखते
ताकि आखिर में कहा जा सके
कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं
इनका असलियत से कोई ताल्लुक नहीं है...
गुरुवार, 25 अप्रैल 2013
संवाद
इस संवाद का कोई तात्पर्य नहीं है
न कोई दिशा है न सन्दर्भ
ये खोखला है
अंधे कुएं की तरह
जिस तरह अंधे कुएं में कितने ही
कंकड़ फेंके जाए
जल-स्तर ऊपर नहीं उठता
सिर्फ उन कंकडो के
सतह को पा लेने की गूँज
ऊपर जगत तक पहुँचती है
उसी तरह
इस संवाद का कोई तात्पर्य नहीं है
मैंने कहा
उन्होंने सुना
फिर शब्दों की गूंज सुनाई दी
न कोई दिशा है न सन्दर्भ
ये खोखला है
अंधे कुएं की तरह
जिस तरह अंधे कुएं में कितने ही
कंकड़ फेंके जाए
जल-स्तर ऊपर नहीं उठता
सिर्फ उन कंकडो के
सतह को पा लेने की गूँज
ऊपर जगत तक पहुँचती है
उसी तरह
इस संवाद का कोई तात्पर्य नहीं है
मैंने कहा
उन्होंने सुना
फिर शब्दों की गूंज सुनाई दी
शनिवार, 20 अप्रैल 2013
पीले फूल
कुछ फूल उग आये हैं
भूरी जमीन पर
पीले रंग के
अपने आप ही
ये अपने दम पर ही जिंदा रहेंगे
जब तक हो सकेगा
उनकी कांटेदार टहनियां
उन्हें जोखिम से बचाएंगी
वो पास खड़े बबूल से भी
दोस्ती नहीं करेंगे
भूरी जमीन पर
पीले रंग के
अपने आप ही
ये अपने दम पर ही जिंदा रहेंगे
जब तक हो सकेगा
उनकी कांटेदार टहनियां
उन्हें जोखिम से बचाएंगी
वो पास खड़े बबूल से भी
दोस्ती नहीं करेंगे
बुधवार, 3 अप्रैल 2013
मरीचिका
बारिश का गिरता पानी
बाहर जमा हो कर
बहने लगता है
सड़के नदियाँ बन जाती है
अन्दर तब भी रेगिस्तान ही रहता है
पानी की एक बूँद तक
सतह पर नहीं टिकती
एक अनन्त प्यास की तरह
इस बारिश को
घूँट घूँट भर
पी लेता है ये रेगिस्तान
फिर न जाने कब ये बारिश हो
न जाने कब राहत मिले फिर
इस तपिश से
न जाने कब भ्रम हो जाए फिर
एक मरीचिका का
जारी है बारिश कल रात से बाहर
या ये उम्मीद पर टिका भ्रम है
शायद ये एक
मरीचिका ही तो है
बाहर जमा हो कर
बहने लगता है
सड़के नदियाँ बन जाती है
अन्दर तब भी रेगिस्तान ही रहता है
पानी की एक बूँद तक
सतह पर नहीं टिकती
एक अनन्त प्यास की तरह
इस बारिश को
घूँट घूँट भर
पी लेता है ये रेगिस्तान
फिर न जाने कब ये बारिश हो
न जाने कब राहत मिले फिर
इस तपिश से
न जाने कब भ्रम हो जाए फिर
एक मरीचिका का
जारी है बारिश कल रात से बाहर
या ये उम्मीद पर टिका भ्रम है
शायद ये एक
मरीचिका ही तो है
गुरुवार, 28 मार्च 2013
अजीब जिद्दी हैं ये
मेरे ख़याल बिखरे पड़े हैं
रास्तों पर
अनजान दहलीजों पर
कहाँ से गुजरूँ
कि इनसे कभी फिर सामना न हो
ये बहुत सवालिया किस्म के हैं
न खुद दम लेते है
न मुझे दो पल
सुकून से आने जाने देते हैं
कोई इन्हें समेट कर
कहीं दूर शहर के बाहर
फेंक क्यूँ नहीं आता
पर फिर लगता है
की ये कहीं
मुझे ढूँढ़ते हुए वापिस
मेरा दरवाजा तो नहीं खटखटाएंगे
अजीब जिद्दी हैं ये...
रास्तों पर
अनजान दहलीजों पर
कहाँ से गुजरूँ
कि इनसे कभी फिर सामना न हो
ये बहुत सवालिया किस्म के हैं
न खुद दम लेते है
न मुझे दो पल
सुकून से आने जाने देते हैं
कोई इन्हें समेट कर
कहीं दूर शहर के बाहर
फेंक क्यूँ नहीं आता
पर फिर लगता है
की ये कहीं
मुझे ढूँढ़ते हुए वापिस
मेरा दरवाजा तो नहीं खटखटाएंगे
अजीब जिद्दी हैं ये...
मंगलवार, 29 जनवरी 2013
मेरी माँ ने कहा है
मेरी माँ ने मुझसे कहा है
कि अब मुझे हवा में उड़ना छोड़ कर
जमीन पर उतर आना चाहिए!!
कि अब मुझे हवा में उड़ना छोड़ कर
जमीन पर उतर आना चाहिए!!
मंगलवार, 22 जनवरी 2013
एक प्राइवेट कंपनी के दफ्तर में
एक प्राइवेट कंपनी के दफ्तर में ज़िन्दगी थोड़ी तेज़ चलती है
वक़्त का हर एक कतरा बटा होता है
काम के अलग अलग हिस्सों में
जिंदगी चलती है हर एक बात का रिमाइंडर लगा कर
की कही कोई जरुरी डिटेल छूट न जाए
एक प्राइवेट कंपनी के दफ्तर में
आपकी अपनी प्राइवेट जिंदगी तो हो सकती है
पर पर्सनल कुछ भी नहीं हो सकता
आप के हर एक मिनट आप प्रोफेशनल की कसौटी पर कसे जाते हैं
और इस जिद में आप ये भूल जाते है
की आप सिर्फ चल नहीं रहे
आप दौड़ रहे है
वो देखिये आप जोर जोर से हाँफते हुए
भागते कहाँ चले जा रहे हैं
आज सुबह एक मीटिंग
कल शाम एक प्रेजेंटेशन है
फ्राइडे को एक डेडलाइन है
अगले मंडे टीम मीटिंग है
आपके सालाना टारगेट्स तय होने हैं
आपकी सालाना तरक्की का जायजा लिया जाना है
आपने कब कब काम में सुस्ती दिखाई
इस बात का अब आपसे हिसाब लिया जाएगा
अरे ये क्या
आप हताश क्यों हो रहे हैं
अभी तो आपको थोडा तेज़ और भागना होगा
अगले साल शायद प्रमोशन भी हो जाए
इस साल आप उस आने वाले प्रमोशन से ही मोटीवेट हो लीजिये
अरे ये क्या
आप कंपनी के लिए बिज़नस लेकर आइये
कुछ इनोवेटिव आइडियाज तो पेश करिए
अरे समझिये
अभी इस साल ज़रा संयम बरतिए
तो क्या हुआ
जो दूसरों को आपसे बेहतर तरक्की दी जा रही है
उनसे कुछ सीखिए
अरे थोडा तो प्रोएक्टिव बनिए
थोड़ा काम के प्रति अग्रेशन दिखाइए
भाई दूसरो को दिखना चाहिए की आपने काम किया है
सिर्फ काम करना ही काफी नहीं है
उसे दिखाना भी आना चाहिए
और अंत में
हम जानते है आपने बहुत काम किया है
आपमें बहुत टैलेंट भी है
अरे उस टैलेंट जो थोडा और निखारिये
बस थोडा तेज़
थोड़ा और तेज़ दौडिए
देखिये वो आपके साथी
वो आपसे आगे निकल रहे हैं
और अब देखिये
आप पहले से भी तेज़ दौड़ रहे हैं
वक़्त की क्या बात करते है
यहाँ वक़्त बचा ही कहा है
ये आप थोड़ा थके हुए से क्यों लग रहे हैं
क्या आपके सर में अब दर्द रहता है
बैठे बैठे कमर भी दुखने लगी है
एयर कंडीशनर की हवा से जुखान भी रहने लगा है
आपकी आँखों का नंबर भी बाद गया है
ये क्या
आप इतने कमजोर क्यों लगते है
किसी डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाते
अरे बॉस आप कुछ दिन छुट्टी लेकर आराम कर लीजिये
ज़िन्दगी बहुत तेज़ दौड़ रही है
ज़रा थम कर स्थिति का जाएजा तो ले लीजिये
पर ये क्या
अब तो तेज़ भागने की आदत पड़ चुकी है
धीरे चलो तो सर घुमने लगता है
लगता है अब हम इस प्राइवेट नौकरी के लायक ही रह गए है
और जिंदगी के पहिये को
तेज़ तेज़ घुमा कर
बगैर देखे
सोचे समझे बूझे
जाने परखे
बस भागते जा रहे हैं
आखिर जिंदगी भी तो तेज़ी से भागती जा रही है
अरे देखो
ज़रा उसे पकड़ो!!!
वक़्त का हर एक कतरा बटा होता है
काम के अलग अलग हिस्सों में
जिंदगी चलती है हर एक बात का रिमाइंडर लगा कर
की कही कोई जरुरी डिटेल छूट न जाए
एक प्राइवेट कंपनी के दफ्तर में
आपकी अपनी प्राइवेट जिंदगी तो हो सकती है
पर पर्सनल कुछ भी नहीं हो सकता
आप के हर एक मिनट आप प्रोफेशनल की कसौटी पर कसे जाते हैं
और इस जिद में आप ये भूल जाते है
की आप सिर्फ चल नहीं रहे
आप दौड़ रहे है
वो देखिये आप जोर जोर से हाँफते हुए
भागते कहाँ चले जा रहे हैं
आज सुबह एक मीटिंग
कल शाम एक प्रेजेंटेशन है
फ्राइडे को एक डेडलाइन है
अगले मंडे टीम मीटिंग है
आपके सालाना टारगेट्स तय होने हैं
आपकी सालाना तरक्की का जायजा लिया जाना है
आपने कब कब काम में सुस्ती दिखाई
इस बात का अब आपसे हिसाब लिया जाएगा
अरे ये क्या
आप हताश क्यों हो रहे हैं
अभी तो आपको थोडा तेज़ और भागना होगा
अगले साल शायद प्रमोशन भी हो जाए
इस साल आप उस आने वाले प्रमोशन से ही मोटीवेट हो लीजिये
अरे ये क्या
आप कंपनी के लिए बिज़नस लेकर आइये
कुछ इनोवेटिव आइडियाज तो पेश करिए
अरे समझिये
अभी इस साल ज़रा संयम बरतिए
तो क्या हुआ
जो दूसरों को आपसे बेहतर तरक्की दी जा रही है
उनसे कुछ सीखिए
अरे थोडा तो प्रोएक्टिव बनिए
थोड़ा काम के प्रति अग्रेशन दिखाइए
भाई दूसरो को दिखना चाहिए की आपने काम किया है
सिर्फ काम करना ही काफी नहीं है
उसे दिखाना भी आना चाहिए
और अंत में
हम जानते है आपने बहुत काम किया है
आपमें बहुत टैलेंट भी है
अरे उस टैलेंट जो थोडा और निखारिये
बस थोडा तेज़
थोड़ा और तेज़ दौडिए
देखिये वो आपके साथी
वो आपसे आगे निकल रहे हैं
और अब देखिये
आप पहले से भी तेज़ दौड़ रहे हैं
वक़्त की क्या बात करते है
यहाँ वक़्त बचा ही कहा है
ये आप थोड़ा थके हुए से क्यों लग रहे हैं
क्या आपके सर में अब दर्द रहता है
बैठे बैठे कमर भी दुखने लगी है
एयर कंडीशनर की हवा से जुखान भी रहने लगा है
आपकी आँखों का नंबर भी बाद गया है
ये क्या
आप इतने कमजोर क्यों लगते है
किसी डॉक्टर को क्यों नहीं दिखाते
अरे बॉस आप कुछ दिन छुट्टी लेकर आराम कर लीजिये
ज़िन्दगी बहुत तेज़ दौड़ रही है
ज़रा थम कर स्थिति का जाएजा तो ले लीजिये
पर ये क्या
अब तो तेज़ भागने की आदत पड़ चुकी है
धीरे चलो तो सर घुमने लगता है
लगता है अब हम इस प्राइवेट नौकरी के लायक ही रह गए है
और जिंदगी के पहिये को
तेज़ तेज़ घुमा कर
बगैर देखे
सोचे समझे बूझे
जाने परखे
बस भागते जा रहे हैं
आखिर जिंदगी भी तो तेज़ी से भागती जा रही है
अरे देखो
ज़रा उसे पकड़ो!!!
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