अगर चलता वक़्त
पीछे की ओर
तो समेट लेते
छूटी यादें
बिसरे मित्र
कुछ पहले पहल
कुछ आखिरी लफ्ज़
अचंभित निराशायें
प्रफ्फुलित मुलाकातें
फिसलती फुरसतें
रूठती बरसातें
सिकुड़ते दिन
बेमतलब बातें
तय किये सफ़र
सोयी हुयी सहर
भागती दोपहरें
रूकती शामें
टूटते तारे
बजती तारें
खुलती सड़कें
बंद दरवाजे
कागजों में बसती स्याही
बक्सों में बंद ज़िन्दगी
पुराने शिकवे
झड़ते फूल सेमल के
घुमावदार सीड़ियाँ
अंतहीन सड़कें
घायल स्वप्न
ठंडी पड़ी योजनायें
फिसलती उम्मीदें
उफान पर हौसले
वक़्त हुआ
कहने का
तुमको अलविदा
नहीं कह सकते
कि फिर मिलेंगे|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें