tag:blogger.com,1999:blog-10031269471864861572024-02-08T21:10:44.224+05:30ये जो है ज़िंदगी...बस एक दिमाग का खलल है.....ये जो है ज़िंदगी...Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.comBlogger64125tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-66188943285521100792019-06-24T20:57:00.004+05:302019-06-24T20:57:53.322+05:30भीड़ <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
उद्देश्यहीन दिशाहीन भटकती भीड़ <div>
उजालों में अँधेरे भरती भीड़ </div>
<div>
आँखों से ओझल खालीपन में </div>
<div>
खामोश चीखें भरती भीड़ </div>
<div>
<br /></div>
<div>
भीड़ में खोता इंसान </div>
<div>
इंसानियत को भूलती ये भीड़ </div>
<div>
सोती हुयी आत्मा का चीत्कार </div>
<div>
सुनकर भी अनसुना करती भीड़ </div>
<div>
<br /></div>
<div>
भेड़चाल की भीड़ </div>
<div>
अहंकार की भीड़ </div>
<div>
सब कुछ खो देने को आतुर </div>
<div>
खुद को चिंगारी देती भीड़ </div>
<div>
</div>
<div>
</div>
</div>
Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-25864614134714843442016-02-26T01:56:00.001+05:302016-02-26T01:56:37.600+05:30एक आखिरी वार से पहले<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक अकेला<br />
एक लकीर से उस पार<br />
पड़ा है निर्जीव निहत्था<br />
चेहरे पर उसके भाव<br />
चीत्कार के<br />
एक आखिरी वार से पहले<br />
<br />
एक भीड़ एक झुण्ड<br />
उस लकीर के दूसरी पार<br />
खड़ी है लेकर हथियार <br />
चेहरे उनके निर्भाव<br />
अराजकता की सुगबुगाहट<br />
एक आखिरी वार से पहले<br />
<br />
<br /></div>
Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-33266065372807793512015-09-13T02:20:00.001+05:302015-09-13T02:20:40.584+05:30सच कहूँ ? <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
सोचता हूँ,<br />
थमता हूँ, <br />
सोचता हूँ, <br />
थमता हूँ, <br />
सोच पर पहरे लगे हैं,<br />
लिखता हूँ, <br />
तो कलम रूकती है, <br />
ठिठकती है,<br />
सच लिखूं ?<br />
सच पढोगे ?<br />
सच कहूँ ?<br />
सच सुनोगे ?<br />
सच पूछूं ?<br />
सच बोलोगे ?<br />
सच तो ये है कि<br />
हम सच सुनना भूल गए,<br />
सच सफ़ेद है, या झूठ काला है<br />
जिसने गोली मारी, वो तालिबान,<br />
जिसने गोली खायी, वो मलाला, <br />
पर गोली मारने वाली सरकारों, <br />
और सरकारी मुलाजिमों को फेहरिस्त में कौन लेगा ?<br />
गोली खाने वाले मासूमों की गिनती<br />
शुरू कब होगी ?<br />
गोली मारने वाले कब पैदा हुए,<br />
उनको किसने पाला पोसा,<br />
इसका हिसाब होगा ?<br />
मुआवजे से जिंदगी का हिसाब,<br />
किसने और कैसे किया ?<br />
और मुआवजा बांटने वाले कौन थे ?<br />
सच के सिपहसालार थे,<br />
या किसी के कंधे पर रख कर,<br />
बंदूके गोलियां चलाने वाले थे ?<br />
सच बोलने वाले कौन थे ?<br />
उन्हें देखा कभी ?<br />
उन्हें कन्धों पर उठाया था, जब वो ज़िंदा थे ?<br />
या ये दिन उनके मरने के बाद ही हमने<br />
उनके जनाज़े पर देखा था ?<br />
सच सफ़ेद, झूठ काला है<br />
झूठ कहूँ, तो झूठ तुम सुनोगे,<br />
झूठ लिखूं, तो झूठ तुम पढ़ोगे,<br />
झूठ ही बोलूं, तुम झूठ ही समझोगे ! </div>
Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-65978765176116901002015-05-17T13:55:00.000+05:302015-05-17T13:55:36.397+05:30रंग<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अपनी नजर के रंग भरता हूँ दुनिया में, <br />
मैंने ख़याल अलग-अलग रंगों की<br />
शीशियों में भर रखे हैं,<br />
मैं आसमान को नीला कहता हूँ<br />
और पत्तों को हरा समझता हूँ<br />
धरती को भूरा और सूरज को<br />
उसके मिजाज के हिसाब से<br />
कभी सुनहरा कभी लाल मानता हूँ<br />
असमानता के कई रंग<br />
मेरी नजर पर पर्दा बन चस्पां हैं<br />
जिस दिन मेरी आँखों से<br />
मेरे नजरिये के, ये रंगीन पर्दे हटेंगे<br />
उस दिन शायद साफ़-साफ़ देख पाउँगा<br />
ये दुनिया आखिर किस रंग की बनी है ! </div>
Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-32769383163091596972015-05-07T21:45:00.002+05:302015-05-07T21:45:48.591+05:30मैं गुजरता रहा<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मैं गुजरता रहा<br />
जिंदगी आगे बढ़ गयी<br />
उसने रोकना चाहा होगा मुझे <br />
रुक कर एक लम्हा<br />
उसकी आँखों में<br />
झाँक सकने के वास्ते<br />
मैं शायद समझ ना सका<br />
सिर्फ हाथ बढ़ा सका मैं<br />
एक दफा हवा में<br />
इस तरह अलविदा कह कर<br />
मैं गुजरता रहा । <br />
<br />
जिंदगी हिसाब मांगती रही<br />
हर एक मोड़ पर<br />
मैं खाली पड़ी जेबों में<br />
भर कर सपने उन्हें<br />
बही खाते की किताबों को<br />
दिखाता रहा<br />
उसने पूछे थे मुझसे<br />
मेरे सपनों के रंग<br />
उन्हें बाँट सकने के वास्ते<br />
पर आसमान की स्याही <br />
रंग बदलती रही <br />
जिंदगी कुछ समझ न सकी<br />
और मैं गुजरता रहा । <br />
<br /></div>
Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-42039063102400611402015-05-04T21:42:00.001+05:302015-05-04T21:42:08.659+05:30सहूलियत के दायरे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मैंने एक सहूलियत की<br />
दुनिया बसा ली है<br />
अब मैं उसके दायरों के<br />
अंदर ही रहता हूँ<br />
<br />
इन दायरों से<br />
बड़ी सहूलियत है<br />
इससे जिंदगी के<br />
सभी दांव पेंच<br />
सुलझे से लगने लगे हैं<br />
अब मुझे कोई<br />
जोखिम लेने की जरुरत नहीं<br />
क्यूँकि ये दायरे मुझे<br />
सहूलियत के झूले<br />
से उतरने ही नहीं देते<br />
<br />
हालांकि शुरू में<br />
दायरों में रहना<br />
आसान न लगता था<br />
वक़्त बेवक़्त एक आवाज<br />
सुनायी देती थी<br />
शायद मेरे अंतर्मन की आवाज<br />
कचोटती सी तीखी<br />
कान के परदे चीरती हुई<br />
मन की गहराईयों को पार कर<br />
पर फिर भी कहीं दूर से<br />
आती हुई लगती वो आवाज<br />
अब नहीं आती<br />
बेवक़ूफ़ कहती थी<br />
कि इतने आराम परस्त न बनो<br />
सिर्फ एक जिंदगी मिली है<br />
इससे अपने ढंग से जीने की<br />
जुर्रत तो करो<br />
ये क्या जमाने की तरह<br />
सहूलियतें जमा कर रहे हो<br />
कुछ जोखिम उठाओ<br />
तब देखो जिंदगी कैसे<br />
खिल कर उठेगी<br />
हर दिन नया होगा<br />
कैसे सुहाने सपने<br />
आहा दिखाए उसने<br />
<br />
पर मैंने सुनकर अनसुना कर दिया<br />
नहीं ये मेरे लिए नहीं<br />
ये आवाज मेरी नहीं<br />
और न मेरे लिए है<br />
ये मुझसे न होगा<br />
कहीं आसमान के सपने<br />
दिखाने वाली ये आवाज<br />
छलावा तो नहीं<br />
<br />
कुछ वक़्त गुजरा<br />
दिन, महीने, साल गुजरे<br />
और सहूलियत की चादर<br />
मेरे तन अंतर्मन पर चढ़ती रही<br />
अब कोई आवाज<br />
मुझ तक नहीं पहुचती<br />
बड़ा सुकून है इन दायरों में<br />
मैं तो बड़ा खुश हूँ<br />
अपनी इन पाबंदियों में<br />
ये सहूलिएत के झूले<br />
ये पाबंदियों की खिड़कियां<br />
ये बंधनो के दरवाजे<br />
मैंने सब ठीक से<br />
ताले लगा बंद कर लिए हैं<br />
मैं अपनी सहूलियतों के <br />
दायरों में हिफाजत से हूँ<br />
<br />
क्या कहते हैं<br />
मैं कायर हूँ<br />
नहीं नहीं<br />
आप बेवक़ूक़ हैं<br />
जो बेकार जोखिम<br />
उठाये घूमते है<br />
आखिर दिखाना क्या चाहते हैं<br />
मेरी तो समझ से पर है<br />
आप किस आवाज की बात कर रहे हैं<br />
अरे उसे गुजरे तो ज़माना हो गया<br />
अपना इलाज क्यों नहीं करवाते<br />
मुझे तो कोई आवाज नहीं<br />
सुनायी देती<br />
क्या बात करते हैं <br />
मैं आपको इलाज बताता हूँ<br />
आप भी वही करिये<br />
जो मैंने किया<br />
मैं आपको उस जगह का पता<br />
लिख देता हूँ<br />
जहां से मैंने अपनी<br />
सहूलियतें खरीदी हैं<br />
आप भी ज़रा<br />
सहूलियतें खरीद लीजिये<br />
सारी आवाजें आना बंद हो जाएँगी<br />
सच कहता हूँ<br />
ज़रा आजमा कर तो देखिये। </div>
Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-49403505508793181402015-05-03T19:09:00.000+05:302015-05-03T19:09:00.110+05:30किनारे<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
तलाश जिन्हें है इनकी<br />
मयस्सर नहीं उनको किनारे<br />
ये तो उनके इन्तेजार में हैं<br />
जो भंवर में खुद को डालना जानते हैं।<br /><br />
---<br />
<br />
किनारे मजिलें नहीं बताते<br />
वो सिर्फ एक याद बन चुके हैं<br />
जिसे बीते हुए एक अरसा गुजर गया<br />
पर लौट कर आती याद और छूटे हुए किनारे<br />
कभी मंजिलें नहीं बताते। </div>
Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-16807864078032406332015-04-28T21:38:00.000+05:302015-04-28T21:38:01.233+05:30 जिंदगी का निशान <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
डूब जाते गर गहरे पानी में,<br />
तो बात कुछ और थी,<br />
हम तो उछले किनारों<br />
पर फिसल कर घुट गए,<br />
सांस थमने को सिर्फ,<br />
एक बहाने की जरूरत थी,<br />
और इस छिछले पानी में तो,<br />
अब मछलियाँ भी नहीं तैरा करती,<br />
यहाँ जिंदगी का कोई निशान,<br />
न मेरे आने से पहले था,<br />
न मेरे होने से कुछ होगा। </div>
Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-23912937789839707452015-04-28T21:18:00.001+05:302015-04-28T21:18:30.946+05:30ताले<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
चाभियाँ लेकर चलता हूँ,<br />
जिधर भी जाता हूँ,<br />
मेरे लफ्ज़ पर ताले,<br />
लगाने की कोशिशों को,<br />
नाउम्मीदी ही हासिल होगी। <br />
<br />
<br /></div>
Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-77890963183332451112015-04-23T23:39:00.001+05:302015-04-29T21:43:27.091+05:30तन्हाई का बसेरा <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
तन्हाई थोड़ा थोड़ा कर<br />
आती रही<br />
और बस गयी<br />
एक बंद कमरे में<br />
धुंध की तरह<br />
अब हम हर<br />
आने वाले रोशनी<br />
के कतरे को<br />
इस धुंध की परछाईयों<br />
में खोजते हैं<br />
इक चमक जब कभी<br />
दिख जाती है<br />
पोरों से सरकती हुई<br />
और बेनकाब कर जाती है<br />
मेरी तन्हाई का<br />
टुकड़ा टुकड़ा<br />
माहौल में उलझा हुआ<br />
उड़ता हुआ पर रुका हुआ<br />
बसा हुआ तंज हवा में<br />
और जब सरक आता है<br />
अँधेरा घुप्प<br />
बिना किसी आहट<br />
या चेतावनी के<br />
सांस लेती है<br />
तन्हाई छुप कर<br />
अंधेरों की सलवटों में<br />
और घूरती है<br />
मेरी बंद आँखों में<br />
<br />
मेरी बंद आँखों में<br />
उसे अपने जीने की<br />
वजह दिखती होगी<br />
शायद<br />
मेरे सिले होठों पर<br />
उसे अपनी जीत की<br />
गूंज सुनाई देती होगी ।<br />
<br />
<br /></div>
Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-76115527491847420032015-04-23T22:39:00.001+05:302015-04-23T22:39:30.134+05:30पहला पन्ना <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
जिंदगी की किताब का पहला पन्ना<br />
हमने खाली छोड़ रखा है<br />
उसे भरने की आरजू तो हुई<br />
पर मेरा नाम<br />
उस काबिल न हो सका </div>
Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-65153745753797221812015-04-23T21:14:00.001+05:302015-04-23T21:14:29.969+05:30अफवाहों का हुनर <div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अफवाहों में होता है, फैलने का हुनर<br />
हम समेट लें अपना वजूद भी तो क्या<br />
वो इश्तेहार बनकर, अखबारों के पहले<br />
पन्नों पर चस्पा हैं. </div>
Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-7569640997916453512015-04-23T21:12:00.001+05:302015-04-23T21:12:20.992+05:30खामोश सोच<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
तन्हा रहते हुए <div>
एक अरसा गुजर गया </div>
<div>
इतना लंबा गुजरा </div>
<div>
कि मेरी सोच को तन्हा कर गया </div>
<div>
<br /></div>
<div>
खामोश रहते हुए </div>
<div>
कितना वक़्त गुजरा </div>
<div>
कितने दिन, कितनी रातें </div>
<div>
बिना एक लफ्ज़ बोले </div>
<div>
या सुने हुए </div>
<div>
क्या लगता है </div>
<div>
क्या ये ख़ामोशी </div>
<div>
सोच को खामोश कर पायेगी </div>
<div>
<br /></div>
</div>
Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-17734643087261732412015-04-22T23:36:00.002+05:302015-04-28T22:16:33.446+05:30खालीपन का शहर<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div>
धीरे धीरे खालीपन भरता रहा </div>
<div>
और देखते ही देखते </div>
<div>
खालीपन का एक पूरा शहर बन </div>
<div>
खड़ा हो गया </div>
<div>
शहर या जंगल </div>
<div>
जैसे जंगल के अनछुए रास्तों पर </div>
<div>
पगडंडियां नहीं होती </div>
<div>
वैसे ही इस खालीपन के शहर को </div>
<div>
मापने के वास्ते </div>
<div>
पगडंडियां अभी नहीं बनी </div>
<div>
और न ही कभी बनेंगी </div>
<div>
क्यूंकि खाली दिल </div>
<div>
कोई असर नहीं छोड़ते</div>
<div>
वो हवा की तरह गुजर जाते हैं </div>
<div>
जो दिखती नहीं और न ही उसमे कोई महक होती है </div>
<div>
उसके होने का अहसास </div>
<div>
सिर्फ वो कर सकते हैं </div>
<div>
जो उसके रास्ते में </div>
<div>
खड़े हो जाते हैं </div>
<div>
पर शहर अभी खाली है </div>
<div>
और यहाँ की हवा </div>
<div>
बेरोक-टोक सांय सांय </div>
<div>
कर रही है </div>
<div>
कोई सुनने वाला भी नहीं </div>
<div>
कोई देखने वाला भी नहीं </div>
<div>
न कोई रास्ता </div>
<div>
न कोई मंजिल </div>
<div>
खालीपन का ये शहर </div>
<div>
अपनी बाहें पसारे </div>
<div>
खाली आसमान की ओर </div>
<div>
उम्मीद भरी निगाहों से देखता है </div>
<div>
न जाने कहाँ गया वो चाँद </div>
<div>
और कहाँ ग़ुम हो गए सितारे</div>
<div>
शहरों की इमारतों से हमने </div>
<div>
पेड़ों के झुरमट को बदल लिया </div>
<div>
अब कहाँ का चाँद </div>
<div>
और कहाँ के सितारे | </div>
<div>
</div>
</div>
Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-54350035743934532682015-04-22T22:23:00.002+05:302015-04-22T22:23:38.017+05:30तुम बढ़ रहे हो हर पलदेखो तुम्हे, <br />
तुम बढ़ रहे हो आगे हर पल <br />
कल जो तुम थे, वो आज नहीं हो <br />
न ही कल फिर होगे कभी आज से <br />
क्योंकि तुम बढ़ रहे हो हर पल <br />
<br />
कहते हैं, <br />
तजुर्बे से जिंदगी जी जाती है <br />
पर तजुर्बा आते आते <br />
न जाने कितना वक़्त लग जाएगा <br />
तब तक हर बार गिर कर <br />
एक बार और तुम उठोगे<br />
तो इस बार कदम<br />
मजबूत हो फिर आगे रखोगे <br />
और देखो जरा <br />
फिर तुम बढ़ रहे होगे हर पल <br />
<br />
देखो तुम्हे, <br />
तुम बढ़ रहे हो आगे हर पल <br />
तुमने कुछ नया सीखा है <br />
अब तुम फिर कभी नहीं रहोगे <br />
जो तुम कल हुआ करते थे <br />
क्योंकि तुम बढ़ रहे हो हर पल Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-33588982824292242152015-04-22T22:22:00.002+05:302015-04-22T22:22:31.249+05:30धरती फिर से जी उठीबादल जो फरार थे<br />
धरती के जीवन प्राण<br />
खुद में कैद किये<br />
आज उनका हिज़ाब गिर गया<br />
और धरती फिर से जी उठीAnkita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-88670814167480695692015-04-22T22:21:00.002+05:302015-04-22T22:21:57.411+05:30बादलधरती को हमने काटकर उसका बटवारा कर लिए<br />
नदियों को हमने रोक लिया और मार लिया<br />
जंगल हमने काट दिए और इतिहास में दफना दिए<br />
सागर पर बारह मील बाद किसी का हक नहीं पर<br />
हम उसकी गहराईयों पर आधिपत्य जमा बैठे हैं<br />
आसमान सूरज चाँद तारो की ज़मीन है पर<br />
जिस दिन आसमान हाथ आया बंट जाएगा<br />
बादल अभी मैदान छोड़ भागते दिखते हैं पर<br />
वो फिर भी हमारे न होंगे<br />
शायद वो एक दिन हमसे<br />
धरा, धारा, अम्बर, अरण्य, और अर्णव का प्रतिशोध लेंगेAnkita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-4160024802377112092015-04-22T22:20:00.002+05:302015-04-22T22:20:35.245+05:30एक खिड़कीवाजिब सवाल शून्य के शोर में डूब चुके हैं<br />
उनके चीख बन वापिस आ सकने के वास्ते<br />
एक खिड़की हमने खुली छोड़ रखी है ||Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-91609887678110369182015-04-22T22:19:00.002+05:302015-04-22T22:19:52.098+05:30जिंदगी मिली!जब पूछा गया<br />
सजा क्या मिली<br />
जवाब आया<br />
जिंदगी मिली,<br />
जीने के लिए!!<br />
<br />
जवाब देने वाले की<br />
आँखों में व्यंग्य था<br />
तैयारी तो दर-असल,<br />
मौत की थी!!<br />
<br />
संघर्ष को कैद करने<br />
की कवायद<br />
जारी तो थी पर<br />
मुकम्मल न थी|Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-46285841193613782782014-05-08T23:46:00.001+05:302014-05-11T18:27:38.284+05:30चलो चलो <br />
अब समय हुआ <br />
कि हम <br />
इस जंगल से निकले <br />
और चलें <br />
नदी के शांत <br />
किनारों की ओर <br />
<br />
चलो <br />
अब समय हुआ<br />
कि हम <br />
इस किनारे को कहें अलविदा <br />
और चलें <br />
सागर की विचलित लहरों <br />
की गोद में <br />
<br />
चलो <br />
अब समय हुआ Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-14859469801217237782014-04-20T00:51:00.001+05:302014-04-20T00:51:21.186+05:30उम्मीदकहो कुछ बात ऐसी कि खून दौड़ जाये रगों में <br />
गर वक़्त ज्यादा गुजरा तो जीने की उम्मीद कम ही रहेगी<br />
<br />
राहगीर हूँ गुमनाम गलियों से गुजरने की ख्वाहिश रखता हूँ <br />
तुम देख भी लो गर तब भी पहचानने की उम्मीद कम ही रहेगी <br />
<br />
तिनका तिनका कर जिंदगी की गठरी सर पर उठाये चलता हूँ <br />
ये बोझ कन्धों से कल भी कम होगा ये उम्मीद कम ही रहेगी <br />
Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-9396673334693233812014-04-08T20:53:00.002+05:302014-04-08T20:53:53.155+05:30कहानीकार हूँ मैं लिखता हूँ खुद को <br />
जीवन भर <br />
करता हूँ मीलों पार <br />
इस तपते रेगिस्तान में<br />
सोचते हुए कि<br />
ये कहानी <br />
अब क्या मोड़ लेगी <br />
ये एक सागर है <br />
इसकी एक लहर <br />
डुबा देगी <br />
या उतरा देगी <br />
<br />
कहानीकार हूँ मैं <br />
<br />
जीवन हूँ मैं <br />
मृत्यु भी हूँ <br />
मैं प्रकाश <br />
मैं अन्धकार भी हूँ <br />
करते हुए बातें कभी <br />
खुद से <br />
उलझ पड़ता हूँ मैं <br />
नींद से <br />
रातों में <br />
जला कर बत्तियां फिर मैं <br />
सपनो को सजाता हूँ <br />
<br />
कहानीकार हूँ मैं <br />
Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-81426401405801533662013-12-31T02:58:00.002+05:302013-12-31T02:58:50.964+05:30अलविदाअगर चलता वक़्त <br />
पीछे की ओर <br />
तो समेट लेते <br />
छूटी यादें <br />
बिसरे मित्र<br />
कुछ पहले पहल <br />
कुछ आखिरी लफ्ज़ <br />
अचंभित निराशायें <br />
प्रफ्फुलित मुलाकातें<br />
फिसलती फुरसतें <br />
रूठती बरसातें<br />
सिकुड़ते दिन <br />
बेमतलब बातें<br />
तय किये सफ़र <br />
सोयी हुयी सहर <br />
भागती दोपहरें <br />
रूकती शामें <br />
टूटते तारे <br />
बजती तारें<br />
खुलती सड़कें <br />
बंद दरवाजे <br />
कागजों में बसती स्याही <br />
बक्सों में बंद ज़िन्दगी<br />
पुराने शिकवे <br />
झड़ते फूल सेमल के<br />
घुमावदार सीड़ियाँ <br />
अंतहीन सड़कें <br />
घायल स्वप्न <br />
ठंडी पड़ी योजनायें <br />
फिसलती उम्मीदें <br />
उफान पर हौसले <br />
वक़्त हुआ <br />
कहने का <br />
तुमको अलविदा <br />
नहीं कह सकते <br />
कि फिर मिलेंगे|Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-90160071236034482992013-12-28T19:51:00.002+05:302013-12-28T19:51:15.459+05:30ज़िन्दगी सड़कों पर खडीदिन की कमीज में पैबंद लगे <br />
रात की चादर कुछ छोटी पड़ गयी <br />
उसने नजर फेर ली <br />
मैंने न देखने का फैसला किया <br />
उसने ज़ुबान पर ताले लगा लिए <br />
मैंने आवाज को दबा दिया <br />
ज़िन्दगी सड़कों पर खडी <br />
नंगी धूप में <br />
बचपन बेचती रही| <br />
<br />
मौसम जब सख्त हुआ और हवा के रुख बदले <br />
जलती धरती पैरो की नरमी खा गयी<br />
उसने हाथ झटक लिए <br />
मैंने कदमों की चाल बढा दी <br />
उसने दरवाजे बंद कर लिए <br />
मैंने रास्ता बदल लिया <br />
ज़िन्दगी सडकों पर खड़ी <br />
नंगी धूप में <br />
बचपन बेचती रही|<br />
<br />
चौराहे पर ज़िन्दगी बदस्तूर चलती रही <br />
एक इमारत महीनों बाद बनकर खड़ी हो गयी<br />
उसने हक की बात न की <br />
मैंने लफ़्ज़ों को समेट लिया <br />
उसने किस्मत को कोस दिया <br />
मैंने हाथों को बढ़ने से रोक लिया<br />
ज़िन्दगी सडकों पर खड़ी <br />
नंगी धूप में <br />
बचपन बेचती रही| Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1003126947186486157.post-29508754910724361692013-11-20T05:55:00.000+05:302013-11-20T05:55:00.190+05:30सुबह होने को हैरात जो चराग जलाए थे <br />
उन्हें बुझा दो <br />
सुबह होने को है <br />
रात जो ख्वाब तारो को बताये थे<br />
उन्हें छुपा दो <br />
दुनिया वाले जागने को है <br />
सुबह होने को है... Ankita Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/16270541881105262682noreply@blogger.com2