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मंगलवार, 28 अप्रैल 2015

जिंदगी का निशान

डूब जाते गर गहरे पानी में,
तो बात कुछ और थी,
हम तो उछले किनारों
पर फिसल कर घुट गए,
सांस थमने को सिर्फ,
एक बहाने की जरूरत थी,
और इस छिछले पानी में तो,
अब मछलियाँ भी नहीं तैरा करती,
यहाँ जिंदगी का कोई निशान,
न मेरे आने से पहले था,
न मेरे होने से कुछ होगा।   

ताले

चाभियाँ लेकर चलता हूँ,
जिधर भी जाता हूँ,
मेरे लफ्ज़ पर ताले,
लगाने की कोशिशों को,
नाउम्मीदी ही हासिल होगी।  


गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

तन्हाई का बसेरा

तन्हाई थोड़ा थोड़ा कर
आती रही
और बस गयी
एक बंद कमरे में
धुंध की तरह
अब हम हर
आने वाले रोशनी
के कतरे को
इस धुंध की परछाईयों
में खोजते हैं
इक चमक जब कभी
दिख जाती है
पोरों से सरकती हुई
और बेनकाब कर जाती है
मेरी तन्हाई का
टुकड़ा टुकड़ा
माहौल में उलझा हुआ
उड़ता हुआ पर रुका हुआ
बसा हुआ तंज हवा में
और जब सरक आता है
अँधेरा घुप्प
बिना किसी आहट
या चेतावनी के
सांस लेती है
तन्हाई छुप कर
अंधेरों की सलवटों में
और घूरती है
मेरी बंद आँखों में

मेरी बंद आँखों में
उसे अपने जीने की
वजह दिखती होगी
शायद
मेरे सिले होठों पर
उसे अपनी जीत की
गूंज सुनाई देती होगी ।


पहला पन्ना

जिंदगी की किताब का पहला पन्ना
हमने खाली छोड़ रखा है
उसे भरने की आरजू तो हुई
पर मेरा नाम
उस काबिल न हो सका 

अफवाहों का हुनर

अफवाहों में होता है, फैलने का हुनर
हम समेट लें अपना वजूद भी तो क्या
वो इश्तेहार बनकर, अखबारों के पहले
पन्नों पर चस्पा हैं. 

खामोश सोच

तन्हा रहते हुए 
एक अरसा गुजर गया 
इतना लंबा गुजरा 
कि मेरी सोच को तन्हा कर गया 

खामोश रहते हुए 
कितना वक़्त गुजरा 
कितने दिन, कितनी रातें 
बिना एक लफ्ज़ बोले 
या सुने हुए 
क्या लगता है 
क्या ये ख़ामोशी 
सोच को खामोश कर पायेगी 

बुधवार, 22 अप्रैल 2015

खालीपन का शहर

धीरे धीरे खालीपन भरता रहा 
और देखते ही देखते 
खालीपन का एक पूरा शहर बन 
खड़ा हो गया 
शहर या जंगल 
जैसे जंगल के अनछुए रास्तों पर 
पगडंडियां नहीं होती 
वैसे ही इस खालीपन के शहर को 
मापने के वास्ते 
पगडंडियां अभी नहीं बनी 
और न ही कभी बनेंगी 
क्यूंकि खाली दिल 
कोई असर नहीं छोड़ते
वो हवा की तरह गुजर जाते हैं 
जो दिखती नहीं और न ही उसमे कोई महक होती है 
उसके होने का अहसास 
सिर्फ वो कर सकते हैं 
जो उसके रास्ते में 
खड़े हो जाते हैं 
पर शहर अभी खाली है 
और यहाँ की हवा 
बेरोक-टोक सांय सांय 
कर रही है 
कोई सुनने वाला भी नहीं 
कोई देखने वाला भी नहीं 
न कोई रास्ता 
न कोई मंजिल 
खालीपन का ये शहर 
अपनी बाहें पसारे 
खाली आसमान की ओर 
उम्मीद भरी निगाहों से देखता है 
न जाने कहाँ गया वो चाँद 
और कहाँ ग़ुम हो गए सितारे
शहरों की इमारतों से हमने 
पेड़ों के झुरमट को बदल लिया 
अब कहाँ का चाँद 
और कहाँ के सितारे  | 

तुम बढ़ रहे हो हर पल

देखो तुम्हे,
तुम बढ़ रहे हो आगे हर पल
कल जो तुम थे, वो आज नहीं हो
न ही कल फिर होगे कभी आज से
क्योंकि तुम बढ़ रहे हो हर पल

कहते हैं,
तजुर्बे से जिंदगी जी जाती है
पर तजुर्बा आते आते
न जाने कितना वक़्त लग जाएगा
तब तक हर बार गिर कर
एक बार और तुम उठोगे
तो इस बार कदम
मजबूत हो फिर आगे रखोगे
और देखो जरा
फिर तुम बढ़ रहे होगे हर पल

देखो तुम्हे,
तुम बढ़ रहे हो आगे हर पल
तुमने कुछ नया सीखा है
अब तुम फिर कभी नहीं रहोगे
जो तुम कल हुआ करते थे
क्योंकि तुम बढ़ रहे हो हर पल

धरती फिर से जी उठी

बादल जो फरार थे
धरती के जीवन प्राण
खुद में कैद किये
आज उनका हिज़ाब गिर गया
और धरती फिर से जी उठी

बादल

धरती को हमने काटकर उसका बटवारा कर लिए
नदियों को हमने रोक लिया और मार लिया
जंगल हमने काट दिए और इतिहास में दफना दिए
सागर पर बारह मील बाद किसी का हक नहीं पर
हम उसकी गहराईयों पर आधिपत्य जमा बैठे हैं
आसमान सूरज चाँद तारो की ज़मीन है पर
जिस दिन आसमान हाथ आया बंट जाएगा
बादल अभी मैदान छोड़ भागते दिखते हैं पर
वो फिर भी हमारे न होंगे
शायद वो एक दिन हमसे
धरा, धारा, अम्बर, अरण्य, और अर्णव का प्रतिशोध लेंगे

एक खिड़की

वाजिब सवाल शून्य के शोर में डूब चुके हैं
उनके चीख बन वापिस आ सकने के वास्ते
एक खिड़की हमने खुली छोड़ रखी है ||

जिंदगी मिली!

जब पूछा गया
सजा क्या मिली
जवाब आया
जिंदगी मिली,
जीने के लिए!!

जवाब देने वाले की
आँखों में व्यंग्य था
तैयारी तो दर-असल,
मौत की थी!!

संघर्ष को कैद करने
की कवायद
जारी तो थी पर
मुकम्मल न थी|