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गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

संवाद

इस संवाद का कोई तात्पर्य नहीं है
न कोई दिशा है न सन्दर्भ
ये खोखला है
अंधे कुएं की तरह
जिस तरह अंधे कुएं में कितने ही
कंकड़ फेंके जाए
जल-स्तर ऊपर नहीं उठता
सिर्फ उन कंकडो के
सतह को पा लेने की गूँज
ऊपर जगत तक पहुँचती है
उसी तरह
इस संवाद का कोई तात्पर्य नहीं है
मैंने कहा
उन्होंने सुना
फिर शब्दों की गूंज सुनाई दी

शनिवार, 20 अप्रैल 2013

पीले फूल

कुछ फूल उग आये हैं
भूरी जमीन पर
पीले रंग के
अपने आप ही
ये अपने दम पर ही जिंदा रहेंगे
जब तक हो सकेगा
उनकी कांटेदार टहनियां
उन्हें जोखिम से बचाएंगी
वो पास खड़े बबूल से भी
दोस्ती नहीं करेंगे

बुधवार, 3 अप्रैल 2013

मरीचिका

बारिश का गिरता पानी
बाहर जमा हो कर
बहने लगता है
सड़के नदियाँ बन जाती है
अन्दर तब भी रेगिस्तान ही रहता है
पानी की एक बूँद तक
सतह पर नहीं टिकती

एक अनन्त प्यास की तरह
इस बारिश को
घूँट घूँट भर
पी लेता है ये रेगिस्तान
फिर न जाने कब ये बारिश हो
न जाने कब राहत मिले फिर
इस तपिश से
न जाने कब भ्रम हो जाए फिर
एक मरीचिका का

जारी है बारिश कल रात से बाहर
या ये उम्मीद पर टिका भ्रम है
शायद ये एक
मरीचिका ही तो है