इस संवाद का कोई तात्पर्य नहीं है
न कोई दिशा है न सन्दर्भ
ये खोखला है
अंधे कुएं की तरह
जिस तरह अंधे कुएं में कितने ही
कंकड़ फेंके जाए
जल-स्तर ऊपर नहीं उठता
सिर्फ उन कंकडो के
सतह को पा लेने की गूँज
ऊपर जगत तक पहुँचती है
उसी तरह
इस संवाद का कोई तात्पर्य नहीं है
मैंने कहा
उन्होंने सुना
फिर शब्दों की गूंज सुनाई दी
very nice:)
जवाब देंहटाएंthank u Pooja... :)
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जवाब देंहटाएंअंकिता जी ऐसा लगता है कि गहरा मंथन चल रहा है |....सुंदर प्रस्तुति |
जी त्रिपाठीजी..बहुत-२ शुक्रिया आपके इस प्रोत्साहन के लिए...
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