तलाश है
कुछ किरदारों की
जो बोल सके
वो अल्फाज
जो दफन है अन्दर
एक कहानी की शक्ल में
ताकि एक दिन
वो कहानी
कही जा सके
सुनी जा सके
एक दिन
जब खड़े हो हम
किसी मशरूफ सड़क पर
और वहाँ मिल सके
एक अधूरे लम्हे से
कुछ जोड़ सके उसमे
कुछ घटा सके
और कम-स-कम कह सके
एक पूरी कहानी
फिर चलें तो
ये सड़क शायद पार कर सके
वरना भीड़ बहुत है
धकेलने के लिए
उनके लम्हे हम नहीं पढते
न ही वो हमारे
हम अलग अलग कहानियों के किरदार है
सो एक दूसरे से बातचीत नहीं रखते
ताकि आखिर में कहा जा सके
कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं
इनका असलियत से कोई ताल्लुक नहीं है...
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन १५ मई, अमर शहीद सुखदेव और मैं - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंताकि आखिर में कहा जा सके
जवाब देंहटाएंकहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं
बहुत खूब
शुक्रिया हौसला-अफजाई के लिए
जवाब देंहटाएंकहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं
जवाब देंहटाएंइनका असलियत से कोई ताल्लुक नहीं है...
बहुत सुंदर अंकिता जी ।
Thank u so much Tripathiji...
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