बारिश का गिरता पानी
बाहर जमा हो कर
बहने लगता है
सड़के नदियाँ बन जाती है
अन्दर तब भी रेगिस्तान ही रहता है
पानी की एक बूँद तक
सतह पर नहीं टिकती
एक अनन्त प्यास की तरह
इस बारिश को
घूँट घूँट भर
पी लेता है ये रेगिस्तान
फिर न जाने कब ये बारिश हो
न जाने कब राहत मिले फिर
इस तपिश से
न जाने कब भ्रम हो जाए फिर
एक मरीचिका का
जारी है बारिश कल रात से बाहर
या ये उम्मीद पर टिका भ्रम है
शायद ये एक
मरीचिका ही तो है
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