मेरे ख़याल बिखरे पड़े हैं
रास्तों पर
अनजान दहलीजों पर
कहाँ से गुजरूँ
कि इनसे कभी फिर सामना न हो
ये बहुत सवालिया किस्म के हैं
न खुद दम लेते है
न मुझे दो पल
सुकून से आने जाने देते हैं
कोई इन्हें समेट कर
कहीं दूर शहर के बाहर
फेंक क्यूँ नहीं आता
पर फिर लगता है
की ये कहीं
मुझे ढूँढ़ते हुए वापिस
मेरा दरवाजा तो नहीं खटखटाएंगे
अजीब जिद्दी हैं ये...
ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की ओर से आप सब को सपरिवार होली ही हार्दिक शुभकामनाएँ !
जवाब देंहटाएंआज की ब्लॉग बुलेटिन होली के रंग, स्लो नेट और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
वाकई ..इनके जिद्दीपने का कोई इलाज नहीं.
जवाब देंहटाएंइन्हें सहेज लीजिये ...यही तो हमारी प्रेरणा हैं....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ब्लॉग पर आने के लिए और इस हौसला अफजाई के लिए.. :)
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