मैं राह के पत्थर सा वहाँ बैठा रहा
जब हवाओं में घुली धुंधलाती रोशनियों में
ऊपर को उठाठे धूल के गुबार
जैसे जैसे एक पेड़ के पत्तों को कैद कर उन पर जमा होने लगे
कुछ ख़याल मेरे सिरहाने एक गुमसुम सा शोर करते सुस्ताने लगे
मैं बैठा रहा कुछ न देख सक कर भी सब कुछ देखते हुए
वहाँ मैंने देखे ...दो पैर दो पेडल ....कुछ हवा का धक्का ...
और दो पहिये ..
एक साथ आगे बड़ते हुए ..
उन्मुक्त ...और आज़ाद ..
मेरे ख़याल भी उठे और उसके पीछे चल दिए
कुछ दूर कुछ कदम ...
दोनों ने एक दूसरे की आँखों में देखा
और आँखों में ही मुस्कराए
जैसे एक राह मिली हो ...
जैसे ही कदम और आगे रखे
कुछ अनजाने रास्ते भी मुझे देख कर मुस्कराए
वहाँ बिखरे पत्तों ने अपनी सरसरात से मेरा इस्तकबाल किया
मैं उन रास्तों की गुंजन को खुद में कैद करता आगे बढ गया
कभी कुछ गुनगुना सकने के वास्ते..
पीछे एक वीरान सड़क ...
आगे एक लम्बा रास्ता ..
जैसे सदियाँ गुजरी हो...
जब हवाओं में घुली धुंधलाती रोशनियों में
ऊपर को उठाठे धूल के गुबार
जैसे जैसे एक पेड़ के पत्तों को कैद कर उन पर जमा होने लगे
कुछ ख़याल मेरे सिरहाने एक गुमसुम सा शोर करते सुस्ताने लगे
मैं बैठा रहा कुछ न देख सक कर भी सब कुछ देखते हुए
वहाँ मैंने देखे ...दो पैर दो पेडल ....कुछ हवा का धक्का ...
और दो पहिये ..
एक साथ आगे बड़ते हुए ..
उन्मुक्त ...और आज़ाद ..
मेरे ख़याल भी उठे और उसके पीछे चल दिए
कुछ दूर कुछ कदम ...
दोनों ने एक दूसरे की आँखों में देखा
और आँखों में ही मुस्कराए
जैसे एक राह मिली हो ...
जैसे ही कदम और आगे रखे
कुछ अनजाने रास्ते भी मुझे देख कर मुस्कराए
वहाँ बिखरे पत्तों ने अपनी सरसरात से मेरा इस्तकबाल किया
मैं उन रास्तों की गुंजन को खुद में कैद करता आगे बढ गया
कभी कुछ गुनगुना सकने के वास्ते..
पीछे एक वीरान सड़क ...
आगे एक लम्बा रास्ता ..
जैसे सदियाँ गुजरी हो...
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