द्रुत गति से चलता हुआ समय
करता है प्रति क्षण हमें सचेत
उठकर अब मंजिल की ओर चल
मानव अब न रह तू अचेत
शाम तक चलती हुई सुबह से
थकी नहीं है समय की रेख
हो दृढ़प्रतिज्ञ तू लक्ष्य बेध
शैया की ओर तू अब न देख
देख समय की ओर अभी तक
एक पल भी वह नहीं रुका
हे मानव! तू चल सत्य के पथ पर
झूठ की तलवारें तुझे नहीं सकती झुका
ढलते हुए अंधेरे से डरकर
आश्रय को मत तू खोज
होती है रात घनघोर अँधेरी
परन्तु नया सवेरा आता है रोज
चलता है प्रतिदिन समय चक्र ये
कभी छाँव कभी होती है तेज़ धूप
करता है समय प्रयत्न समझाने का
जीवन के परिवर्तित होते स्वरूप
कर ले ये निश्चय आज अभी
रुकना है तुझको नहीं कभी
हे समयपुरूष तेरे साथ हैं ये
पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश सभी ..
करता है प्रति क्षण हमें सचेत
उठकर अब मंजिल की ओर चल
मानव अब न रह तू अचेत
शाम तक चलती हुई सुबह से
थकी नहीं है समय की रेख
हो दृढ़प्रतिज्ञ तू लक्ष्य बेध
शैया की ओर तू अब न देख
देख समय की ओर अभी तक
एक पल भी वह नहीं रुका
हे मानव! तू चल सत्य के पथ पर
झूठ की तलवारें तुझे नहीं सकती झुका
ढलते हुए अंधेरे से डरकर
आश्रय को मत तू खोज
होती है रात घनघोर अँधेरी
परन्तु नया सवेरा आता है रोज
चलता है प्रतिदिन समय चक्र ये
कभी छाँव कभी होती है तेज़ धूप
करता है समय प्रयत्न समझाने का
जीवन के परिवर्तित होते स्वरूप
कर ले ये निश्चय आज अभी
रुकना है तुझको नहीं कभी
हे समयपुरूष तेरे साथ हैं ये
पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश सभी ..
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