जो सुबह को बड़ी
मुश्किलों से जागता है
चादर से फिर वो अपनी
कुछ सपनो को झाड़ता है
अनमनाया सा
उठ कर चल देता है फिर
बाहर की दुनिया में
हज़ारों की भीड़ में धक्के खाता
नींद भरी उबासियाँ भरता हुआ
कभी खडा होता कभी बैठता
कभी चलता कभी दौड़ता
पहुचता है कभी वक़्त पर
तो कभी देर से
एक दुकान में कभी कुछ खरीदता
कभी कुछ बेचता है
कभी कोने में पडी बेंच पर
थोड़ा सो लेता है
और फिर अचानक से उठकर
इधर उधर देखता है
एक ख़याल मिलता है दुसरे खयालों से
और खुश हो लेता है
मुस्कराता है कभी सिर्फ
कभी बोल भी लेता है
एक ख़याल है
जो बैठ कर सुबह शाम
कागजों पर अपनी तस्वीरें उकेरता रहता है
कुछ पूरी तस्वीरें कुछ अधूरी
और कुछ ऐसी जिन्हें वो फाड़ कर फेंक देता है
उठकर एक कोने में जाता है
सोचता है कुछ
कभी चाय के प्याले साथ
एक ख़याल गरमाता है कहीं
थोड़ी ही देर में
फिर वही
दौड़ भाग
वही धक्के देकर आगे बढती भीड़
वही शोर
वही बातें
वही झगडे रोज़ के
वैसे ही लफ्ज़
वही किताबें
वही अखबार
और उसमे छपी वही ख़बरें
पेट भरने की जुगाड़
वक़्त भरने की कवायद
एक ख़याल है
दूसरों की जिंदगियों में झांकता
अपने आप से बचता हुआ
दूसरों के ख्यालों में मशरूफ
तेज शोर में कुछ झपकियाँ लेता हुआ
एक ख़याल है
जो थोड़ी देर में
बत्तियां बुझा देगा
बिखरे सपनो का तकिया बनाकर
अपनी चादर ओड़कर
सो जाएगा
और फिर से सपने बुनेगा
कल सुबह कुछ अलग होगी....
Anki,this one is really very nice.Specially loved the last lines. Keep it up girl.Will be a regular reader of your blog now... so keep on flooding some more good ones ;)
जवाब देंहटाएंHi Ankita, this one is beautiful.. I have not read all of your work, just some of them... so dheere dheere i will read more... You write tooooo beautiful.... Please also publish your writings... Love your blog, but would love to see printed version in books as well!!!!
जवाब देंहटाएंRhituparna.
"ये जो है जिंदगी"...वो इन खयालों से ही तो है |
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना |
thanks mantu kumar..:)
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