ढूंडा मैंने ख़ुद को जब भी
जिंदगी से बस एक यही जवाब आया
मेरा नहीं है कोई अस्तित्व
मैं तो हूँ सिर्फ़ समय की एक छाया
जैसे जैसे गुजरेगा ये वक्त
पैरों के निशान धुंदले पड़ते जायेंगे
सामना न हो पायेगा कभी ख़ुद से
और सपने अधूरे ही मरते जायेंगे
जैसे कभी जिंदगी को समझ ही न पाए
पल पल दिल में ये अहसास रहेगा
जीते रहे दूसरों की दी हुई यादों को
शायद हमें भी कभी इस बात का मलाल होगा
पर जैसे हर लहर हमेशा जाकर
अपने किनारों से टकरा जाती है
मेरा स्वयं का एहसास भी कभी
भूले भटके ही सही मुझसे टकराएगा
उम्मीद है शायद कम से कम
तब तो वो मेरा साथ निभाएगा .
जिंदगी से बस एक यही जवाब आया
मेरा नहीं है कोई अस्तित्व
मैं तो हूँ सिर्फ़ समय की एक छाया
जैसे जैसे गुजरेगा ये वक्त
पैरों के निशान धुंदले पड़ते जायेंगे
सामना न हो पायेगा कभी ख़ुद से
और सपने अधूरे ही मरते जायेंगे
जैसे कभी जिंदगी को समझ ही न पाए
पल पल दिल में ये अहसास रहेगा
जीते रहे दूसरों की दी हुई यादों को
शायद हमें भी कभी इस बात का मलाल होगा
पर जैसे हर लहर हमेशा जाकर
अपने किनारों से टकरा जाती है
मेरा स्वयं का एहसास भी कभी
भूले भटके ही सही मुझसे टकराएगा
उम्मीद है शायद कम से कम
तब तो वो मेरा साथ निभाएगा .
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