दिल की चारदीवारी में कहीं गहराइयों में शब्द कैद हैं
आंखों मैं तारों की तरह चमकते थे जो कभी वो सपने कैद हैं
सोचा था कट जायेंगे ये रास्ते पलकों के झपकते ही
उन रास्तों पर आज भी चलता हुआ मेरा सफर कैद है
जगमगा उठती हैं रोशनियाँ भी ख़ुद जहाँ दिन ढलते ही
पर हर जिन्दगी की शाम में जीता हुआ यहाँ अँधेरा कैद है
आंखों मैं तारों की तरह चमकते थे जो कभी वो सपने कैद हैं
सोचा था कट जायेंगे ये रास्ते पलकों के झपकते ही
उन रास्तों पर आज भी चलता हुआ मेरा सफर कैद है
जगमगा उठती हैं रोशनियाँ भी ख़ुद जहाँ दिन ढलते ही
पर हर जिन्दगी की शाम में जीता हुआ यहाँ अँधेरा कैद है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें