एक बड़ा सा साइन बोर्ड है
एक मशरूफ सी सड़क के किनारे पर
जिस पर लटकी हुयी है एक ज़िन्दगी
एक रस्सी के सहारे
वो वहाँ पर एक इश्तेहार लगा रही है
एक हवा से बातें करने वाली गाडी का
और मैं पशो पेश में
समझ नहीं आता
किस तरफ देखा जाए
हवा में कलाबाजियां खाती जिंदगी को
या इश्तेहार में छपी
रुकी हुयी सपनो की उड़ान को
नीचे सड़क के कोलाहल को
या ऊपर स्वच्छंद आसमान को
कंक्रीट की बनी सडको पर दोडूं
या देखू हजारों मीलों दूर जगमगाते पत्थरों को
या आँखें बंद करूँ बस और
पा लूँ एक जिंदगी यहाँ भी और एक जिंदगी की दौड़ वहाँ भी...
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