धरती को हमने काटकर उसका बटवारा कर लिए
नदियों को हमने रोक लिया और मार लिया
जंगल हमने काट दिए और इतिहास में दफना दिए
सागर पर बारह मील बाद किसी का हक नहीं पर
हम उसकी गहराईयों पर आधिपत्य जमा बैठे हैं
आसमान सूरज चाँद तारो की ज़मीन है पर
जिस दिन आसमान हाथ आया बंट जाएगा
बादल अभी मैदान छोड़ भागते दिखते हैं पर
वो फिर भी हमारे न होंगे
शायद वो एक दिन हमसे
धरा, धारा, अम्बर, अरण्य, और अर्णव का प्रतिशोध लेंगे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें