तन्हाई थोड़ा थोड़ा कर
आती रही
और बस गयी
एक बंद कमरे में
धुंध की तरह
अब हम हर
आने वाले रोशनी
के कतरे को
इस धुंध की परछाईयों
में खोजते हैं
इक चमक जब कभी
दिख जाती है
पोरों से सरकती हुई
और बेनकाब कर जाती है
मेरी तन्हाई का
टुकड़ा टुकड़ा
माहौल में उलझा हुआ
उड़ता हुआ पर रुका हुआ
बसा हुआ तंज हवा में
और जब सरक आता है
अँधेरा घुप्प
बिना किसी आहट
या चेतावनी के
सांस लेती है
तन्हाई छुप कर
अंधेरों की सलवटों में
और घूरती है
मेरी बंद आँखों में
मेरी बंद आँखों में
उसे अपने जीने की
वजह दिखती होगी
शायद
मेरे सिले होठों पर
उसे अपनी जीत की
गूंज सुनाई देती होगी ।
आती रही
और बस गयी
एक बंद कमरे में
धुंध की तरह
अब हम हर
आने वाले रोशनी
के कतरे को
इस धुंध की परछाईयों
में खोजते हैं
इक चमक जब कभी
दिख जाती है
पोरों से सरकती हुई
और बेनकाब कर जाती है
मेरी तन्हाई का
टुकड़ा टुकड़ा
माहौल में उलझा हुआ
उड़ता हुआ पर रुका हुआ
बसा हुआ तंज हवा में
और जब सरक आता है
अँधेरा घुप्प
बिना किसी आहट
या चेतावनी के
सांस लेती है
तन्हाई छुप कर
अंधेरों की सलवटों में
और घूरती है
मेरी बंद आँखों में
मेरी बंद आँखों में
उसे अपने जीने की
वजह दिखती होगी
शायद
मेरे सिले होठों पर
उसे अपनी जीत की
गूंज सुनाई देती होगी ।
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