धीरे धीरे खालीपन भरता रहा
और देखते ही देखते
खालीपन का एक पूरा शहर बन
खड़ा हो गया
शहर या जंगल
जैसे जंगल के अनछुए रास्तों पर
पगडंडियां नहीं होती
वैसे ही इस खालीपन के शहर को
मापने के वास्ते
पगडंडियां अभी नहीं बनी
और न ही कभी बनेंगी
क्यूंकि खाली दिल
कोई असर नहीं छोड़ते
वो हवा की तरह गुजर जाते हैं
जो दिखती नहीं और न ही उसमे कोई महक होती है
उसके होने का अहसास
सिर्फ वो कर सकते हैं
जो उसके रास्ते में
खड़े हो जाते हैं
पर शहर अभी खाली है
और यहाँ की हवा
बेरोक-टोक सांय सांय
कर रही है
कोई सुनने वाला भी नहीं
कोई देखने वाला भी नहीं
न कोई रास्ता
न कोई मंजिल
खालीपन का ये शहर
अपनी बाहें पसारे
खाली आसमान की ओर
उम्मीद भरी निगाहों से देखता है
न जाने कहाँ गया वो चाँद
और कहाँ ग़ुम हो गए सितारे
शहरों की इमारतों से हमने
पेड़ों के झुरमट को बदल लिया
अब कहाँ का चाँद
और कहाँ के सितारे |
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