तलाश जिन्हें है इनकी
मयस्सर नहीं उनको किनारे
ये तो उनके इन्तेजार में हैं
जो भंवर में खुद को डालना जानते हैं।
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किनारे मजिलें नहीं बताते
वो सिर्फ एक याद बन चुके हैं
जिसे बीते हुए एक अरसा गुजर गया
पर लौट कर आती याद और छूटे हुए किनारे
कभी मंजिलें नहीं बताते।
मयस्सर नहीं उनको किनारे
ये तो उनके इन्तेजार में हैं
जो भंवर में खुद को डालना जानते हैं।
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किनारे मजिलें नहीं बताते
वो सिर्फ एक याद बन चुके हैं
जिसे बीते हुए एक अरसा गुजर गया
पर लौट कर आती याद और छूटे हुए किनारे
कभी मंजिलें नहीं बताते।
waah kya khub likha hai ji ...
जवाब देंहटाएंaur phir kinaare hi manzile ban jaati hai na kabhi kabhi ..
shukirya
vijay
09849746500
poemsofvijay.blogspot.in