ये कहाँ से इतने लोग चले आ रहे हैं
सरों पर गठरियाँ उठाये
न जाने कहाँ से लोग चले आ रहे हैं
औरतें
छोटी, बड़ी और बूढी
और मर्द भी
कुछ आगे कुछ पीछे
कुछ साथ में
और बच्चे
कतारों में लगे
न जाने कहाँ से लोग
चले आ रहे हैं
कुछ उठाये हुए हैं झंडे
कुछ हाथों में बैनर लिए आ रहे हैं
आँखों में कुछ उदासी
एक शिकायत
तो कुछ जोश लिए आ रहे हैं
अपनी जमीनों से दूर
अपनी जमीनों का हक पाने
अविरल पानी से बहते
जाने कहाँ कहाँ से लोग चले आ रहे हैं
कितने दिनों के चलते चलते
कुछ थके कुछ हारे फिर भी चलते
कुछ खाने का सामान साथ लिए
कितने दिनों के घर से निकले
जलते हुए गले
जलते हुए पैरों को आगे बढ़ाते
जलते हुए सपनों के सहारे
हज़ारों लोग
बस इसी दिशा में
बढे आ रहे हैं...
बढ़िया अवलोकन फिर उसे शब्दों में पिरोना...लाजवाब...|
जवाब देंहटाएंvery nice thought.
जवाब देंहटाएंThanks Zorden... :)
जवाब देंहटाएंवाह ... बेहतरीन
जवाब देंहटाएंthank u Sadaa ji.. :)
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