कहो कुछ बात ऐसी कि खून दौड़ जाये रगों में
गर वक़्त ज्यादा गुजरा तो जीने की उम्मीद कम ही रहेगी
राहगीर हूँ गुमनाम गलियों से गुजरने की ख्वाहिश रखता हूँ
तुम देख भी लो गर तब भी पहचानने की उम्मीद कम ही रहेगी
तिनका तिनका कर जिंदगी की गठरी सर पर उठाये चलता हूँ
ये बोझ कन्धों से कल भी कम होगा ये उम्मीद कम ही रहेगी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें