उद्देश्यहीन दिशाहीन भटकती भीड़
उजालों में अँधेरे भरती भीड़
आँखों से ओझल खालीपन में
खामोश चीखें भरती भीड़
भीड़ में खोता इंसान
इंसानियत को भूलती ये भीड़
सोती हुयी आत्मा का चीत्कार
सुनकर भी अनसुना करती भीड़
भेड़चाल की भीड़
अहंकार की भीड़
सब कुछ खो देने को आतुर
खुद को चिंगारी देती भीड़
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