अपनी नजर के रंग भरता हूँ दुनिया में,
मैंने ख़याल अलग-अलग रंगों की
शीशियों में भर रखे हैं,
मैं आसमान को नीला कहता हूँ
और पत्तों को हरा समझता हूँ
धरती को भूरा और सूरज को
उसके मिजाज के हिसाब से
कभी सुनहरा कभी लाल मानता हूँ
असमानता के कई रंग
मेरी नजर पर पर्दा बन चस्पां हैं
जिस दिन मेरी आँखों से
मेरे नजरिये के, ये रंगीन पर्दे हटेंगे
उस दिन शायद साफ़-साफ़ देख पाउँगा
ये दुनिया आखिर किस रंग की बनी है !
मैंने ख़याल अलग-अलग रंगों की
शीशियों में भर रखे हैं,
मैं आसमान को नीला कहता हूँ
और पत्तों को हरा समझता हूँ
धरती को भूरा और सूरज को
उसके मिजाज के हिसाब से
कभी सुनहरा कभी लाल मानता हूँ
असमानता के कई रंग
मेरी नजर पर पर्दा बन चस्पां हैं
जिस दिन मेरी आँखों से
मेरे नजरिये के, ये रंगीन पर्दे हटेंगे
उस दिन शायद साफ़-साफ़ देख पाउँगा
ये दुनिया आखिर किस रंग की बनी है !