एक अकेला
एक लकीर से उस पार
पड़ा है निर्जीव निहत्था
चेहरे पर उसके भाव
चीत्कार के
एक आखिरी वार से पहले
एक भीड़ एक झुण्ड
उस लकीर के दूसरी पार
खड़ी है लेकर हथियार
चेहरे उनके निर्भाव
अराजकता की सुगबुगाहट
एक आखिरी वार से पहले
एक लकीर से उस पार
पड़ा है निर्जीव निहत्था
चेहरे पर उसके भाव
चीत्कार के
एक आखिरी वार से पहले
एक भीड़ एक झुण्ड
उस लकीर के दूसरी पार
खड़ी है लेकर हथियार
चेहरे उनके निर्भाव
अराजकता की सुगबुगाहट
एक आखिरी वार से पहले